भसकररयर और भास्कर राजपुरम शिव मंदिर
भास्करराजपुरम , मयिलादुरै, तमिल नाडु में स्थित है। श्री भास्कराय की पत्नी आनंदी ने श्री आनंदवल्ली समेता भास्करेश्वरर शिव मंदिर ४०० वर्ष पूर्व बनवाया था। श्री भास्करराय का एक मणि मंडपम है जहा महा मेरु है और नित्य पूजाएँ की जाती है। नववरणा पूजा पूर्णिमा रात में और अन्य विशेष दिन की जाती है।
संपर्क:
Sri. N. Bhaskara Sivam
Bhaskararajapuram
Phone: 04364 - 232400 / 97885 24776
श्री भास्करराय की जीवनी -
श्री भास्करराय का जन्म महाराष्ट्र के बाघा में श्री गंभीर रयर और श्रीमती कोनाम्बिका के घर १६९० में हुआ। वैदिक सिख्शा प्राप्त कर वे काशी गए और श्री नर्सिम्हानन्द नाथ के साथ पढाई शुरू की। गंगाधर वाजपेयी के पास उन्होंने शास्त्रो का ज्ञान लिया। इसके बात उन्होंने वैवाहिक जीवन श्रीमती आनंदवल्ली के साथ शुरू किया जो भी एक श्रीविद्या उपासकी थी।
उन्होंने संत शिवदत्त शुक्ल से उपासना सीखी। तंजावूर के राजा ने उन्हें तंजावूर में रहने का आमंत्रण दिया और भास्कराजपुरम में जमीन भी दी। वे तिरुविडैमरुथुर महा धन मार्ग पर भी रहे।
श्री विद्या उपासक होने हेतु उन्होंने करीब ४० किताबे लिखी - मन्त्र शास्त्र , अद्वैत वेदांत जैसे विषयो के ऊपर। उनकी सबसे अपूर्व रचना - सौभाग्य भास्करं ; ललिता सहस्रनाम लिखी हुई व्याख्या है। इन्होने त्रिकोडिकावल मंदिर पर भी रचना की है। उनकी अनेको प्रसिद्ध रचनाये है जैसे - वरिवस्य रहस्यम , गुप्तवती इत्यादि। उनकी श्रीविद्या गुरु परंपरा आज भी श्री चक्र पूजाओं में उपयोग की जाती है
जीवनी पर और प्रकाश डालने के लिए नीचे लिखे संकेत स्थल पर क्लिक करे :
http://www.reocities.com/Athens/thebes/2257/LifeHistoryofSriBhaskararaya.htm
translated by Ananya
Travel Operator Contact Informations:
South India Vacation
Mobile : 8144977442
Email Id :southindiavacation@yahoo.com
भास्करराजपुरम , मयिलादुरै, तमिल नाडु में स्थित है। श्री भास्कराय की पत्नी आनंदी ने श्री आनंदवल्ली समेता भास्करेश्वरर शिव मंदिर ४०० वर्ष पूर्व बनवाया था। श्री भास्करराय का एक मणि मंडपम है जहा महा मेरु है और नित्य पूजाएँ की जाती है। नववरणा पूजा पूर्णिमा रात में और अन्य विशेष दिन की जाती है।
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Sri. N. Bhaskara Sivam
Bhaskararajapuram
Phone: 04364 - 232400 / 97885 24776
श्री भास्करराय की जीवनी -
श्री भास्कराय |
उन्होंने संत शिवदत्त शुक्ल से उपासना सीखी। तंजावूर के राजा ने उन्हें तंजावूर में रहने का आमंत्रण दिया और भास्कराजपुरम में जमीन भी दी। वे तिरुविडैमरुथुर महा धन मार्ग पर भी रहे।
श्री विद्या उपासक होने हेतु उन्होंने करीब ४० किताबे लिखी - मन्त्र शास्त्र , अद्वैत वेदांत जैसे विषयो के ऊपर। उनकी सबसे अपूर्व रचना - सौभाग्य भास्करं ; ललिता सहस्रनाम लिखी हुई व्याख्या है। इन्होने त्रिकोडिकावल मंदिर पर भी रचना की है। उनकी अनेको प्रसिद्ध रचनाये है जैसे - वरिवस्य रहस्यम , गुप्तवती इत्यादि। उनकी श्रीविद्या गुरु परंपरा आज भी श्री चक्र पूजाओं में उपयोग की जाती है
जीवनी पर और प्रकाश डालने के लिए नीचे लिखे संकेत स्थल पर क्लिक करे :
http://www.reocities.com/Athens/thebes/2257/LifeHistoryofSriBhaskararaya.htm
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